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Poem (52) Geet (1)

Sunday 29 May 2016

केवीजी गीत २०१५

खोई हुईं खुशियाँ पाने का
राज़ आज है जाना जी..जाना जी..जाना जी
लौट चलें बचपन की ओर
कहे ये अपना केवीजी..केवीजी..केवीजी।

आओ धरा को फिर से चूमें,
हाथ बढ़ा कर नभ को छू लें,
पानी पर तस्वीर बनाने से,
आज कोई ना रोके जी..रोके जी..रोके जी
कहे ये अपना केवीजी..केवीजी..केवीजी।

धूल लगे बस्ते को खोलें,
बंद क़िताब के पन्ने पलटें,
कूची को रंगों में मिलने से,
आज कोई ना टोके जी..टोके जी..टोके जी
कहे ये अपना केवीजी..केवीजी..केवीजी।

तीसरे पीरियड में टिफिन निपटा के,
रिसेस में कैंडी आइस क्रीम खाके,
फ्री पीरियड में क्रिकेट खेलने में,
आज कोई ना सोचे जी..सोचे जी..सोचे जी
कहे ये अपना केवीजी..केवीजी..केवीजी।

पुराने मित्रों से जमकर मिल लें,
थोड़ी उनसे शरारत कर लें,
वापिस बड़े हो जाने को,
आज कोई ना बोले जी..बोले जी..बोले जी
कहे ये अपना केवीजी..केवीजी..केवीजी।

(My very first song dedicated to mini Re-union of KVG held at Hyderabad post Dipawali 2015)

© 17th November 2015 Sushil Kumar Sharma
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सुरम्य की मुस्कान

समय के पहिए सरपट दौड़ पड़े थे
खुशियों को तो जैसे पंख लगे थे
साथ देने बड़े भाई शुभांकर का
सुरम्य तुम परिवार में जुड़े थे।

प्यारी सूरत भोली बातें
चमकती हुई वो गोल आँखें
लाड़ करते लड़ते झगड़ते
कटती थीं हम सबकी रातें।

पूरे हो रहे आज पंद्रह बरस
समय अब तक रहा सरस
आगामी जीवन की पगडंडी में
आड़े ना आए कोई तमस।

पहली बड़ी परिक्षा (१०वीं) अति निकट है
जो बिलकुल भी नहीं विकट है
जिसने जग में जीतना सीखा
वही वास्तव में असली जीवट है।

(हमारे प्यारे बेटे सुरम्य को उसकी १५वीं वर्षगाँठ पर खूब सारा आशिर्वाद, २० अक्टूबर २०१५)

© 20th October 2015 Sushil Kumar Sharma
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शुभांकर का आगमन

बीस बरस पहले दिन वो आया था
जिसने हम सबको हर्षाया था
सुशील-निधी की छोटी सी बगिया में
शुभांकर नाम का फूल मुस्काया था।

खुशियों से घर-द्वार सजा था
बधाईयों का अंबार लगा था
दादा-दादी के चेहरों पर
गर्व और संतोष अपार था।

आगमन तुम्हारा था महत्वपूर्ण
जिसने जीवन को बनाया अर्थपूर्ण
दादा-दादी और हमारी परवरिश ने
दिए तुम्हे संस्कार-सदगुण संपूर्ण।

आगामी हर पल को आनंदमय बनाओ
अपनों के जीवन को सुखमय बनाओ
जीवन के हर संघर्ष-चुनौती पर
विजय पताका फहराते जाओ।

(हमारे प्रिय बेटे शुभांकर को जन्म दिवस पर ढेरों स्नेहाशीष, १९ अक्टूबर २०१५)

© 19th October 2015 Sushil Kumar Sharma
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Tuesday 17 May 2016

फरियाद

आहट सी चौखट पे फिर इक बार सुनी है
शायद राह नसीब ने मेरे घर की चुनी है।

मेले में नुमाईश के बीच खुशी थी बिक रही
एक मेरी ही झोली मौला ने तंग बुनी है।

बदला है जबसे अपनों ने मेरे घर से बसेरा
सुना है रोशनी उस शहर में अब दो गुनी है।

देने निज़ात मायूसी से वो आते हैं या कज़ा
यार के दीदार को इक उम्र से आँख सूनी है।

(अकेलेपन को बयां करने की एक कोशिश, १७ मई २०१६ )

हिंदी दिवस २०१५

हिंदी दिवस पर हिंदी का गुणगान करना आजकल एक रिवाज़ है
हिंदी संपूर्ण भारतवर्ष के जन-मानस की आवाज़ है।

आज के दिन हिंदी का प्रतीक बनना बड़े गर्व की बात है
हिंदी भाषा में ही तो भाव की अभिव्यक्ति आत्मसात है।

भाषा चाहे कोई भी हो उसकी अपनी विशेषता है
हिंदी भाषा ने हमें सिखाई अनेकता में एकता है।

हिंदी है हमारी मातृ-राज-राष्ट्र भाषा आओ इसका सम्मान करें
जब भी लिखें या बोलें हिंदी में हम इस पर अभिमान करें।

© 14th September 2015 Sushil Kumar Sharma
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बचपन की बारिश

वर्षा ऋतु का हो रहा है आगमन,
वन में मयूर करने लगे हैं थिरकन,
डर से गर्मी की बढ़ गई है धड़कन,
याद आ गया खिलखिलाता बचपन।

बारिश की फुहारें पेड़ों का लहलहाना,
बहती हुई नाली में नाव को तैराना,
बिजली की तार पर बूंदों का आना-जाना,
इतना सुहावना था अपना बचपन।

बारिश के बाद वो धूप का निकलना,
इंद्रधनुष का पूरे नभ पर छा जाना,
सतरंगी छटाओं को निहारते जाना,
कितना रंगीन था सबका बचपन।

बारिश की फुहार से अब ख्वाहिश नहीं जगती,
कुदरत के रंगों में उमंग नहीं दिखती,
जीवन की कश्मकश में रूमानियत नहीं मिलती,
इस से भला था हम सभी का बचपन।

(बचपन की बारिश को याद करते हुए कुछ विचार, ०९ जुलाई २०१५)

© 9th July 2015 Sushil Kumar Sharma
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Saturday 14 May 2016

दास्तान-ए-कारवाँ

बात यह तीन दशक पुरानी है,
मुलाकात है नई पहचान पुरानी है;
दुनिया है कितनी छोटी बात आज ये जानी है,
बिखरी हुई कुछ यादों को मुठ्ठी में करने की ठानी है।

अलग प्रांत अलग परिवेष के साथियों से कुछ यूँ मिलना हुआ,
जैसे कि एक लघु भारत का दो पल में बनना हुआ;
नोंक झोंक मौज मस्ती के बीच नए मित्रों से जुङना हुआ,
जैसे कि जीवन की किताब में एक नए अध्याय का लिखना हुआ।   

सीरो का ज़ीरो समझना था मुश्किल, तोलु का भौतिक शास्त्र् था बङा जटिल,
काज़ी सर की इंगलिश सुभान अल्लाह, मलैया सर का इतिहास माशा अल्लाह;
दीक्षित मैडम का बेहतरीन व्याकरण, शिवन्ना सर का कङा अनुशासन,
सुबय्या सर का गणित इस कोण से उस कोण, 
शर्मा मैडम का भूगोल कभी नॉर्थ पोल तो कभी साउथ पोल।

शिक्षक सहपाठियों के संग समय सरपट भागता गया,
जलदी ही दसवी की परिक्षा का वक्त भी समीप आ गया;
करके जीत दर्ज इस पङाव में हम सब हर्षित हो गए,
कुछ साथी रह गए संग कुछ अपनी राह के हो गए।

अपने रुझान क्षमतानुरुप सबने ज्ञानर्जन किया,
जीवन में सुगम जीविका का मार्ग सबने पृशस्त किया;
कुछ ने देश की अस्मिता की सुरक्षा का भार अपने कंधों पे लिया,
कुछ ने विदेश में अपने योगदान से देश का नाम रोशन किया।

वक्त के बहते दरिया के संग हम सब भी बहते गए,
थामे हाथ हमराही का अपने-अपने जीवन में रमते गए,
जीवन के उतार-चढ़ाव में नए मुकाम पाते गए,
पुरानी यादों के साए में नए सपने सजाते गए।

समय ने फिर ली अंगङाई पुरानी यादों से जुङने की सुध अब आई,
भूले-बिसरे मित्रों से मिलने में फेसबुक बना करिश्माई;
एक-दूजे से जुङने का सिलसिला एक बरस तक चलता रहा,
तीन मास पहले वाह्ट्सयेप ने लंबी जुदाई को अलविदा कहा।

तीन दशक के बाद आज हम एक-दूजे के आमने-सामने हैं,
मुक्कमल इस ख्वाब को जिन्होंने किया वो सचमुच ही दीवाने हैं;
प्यार-विश्वास-बंधन-चाहत यही तो दोस्ती के पैमाने हैं,
आज कर रहे जो सफर शुरू हम एक दिन कारवाँ बन जाने हैं।

सुशील शर्मा
०४ जुलाई २०१५

(This composition is dedicated to Re-union of 10th standard students of KVG, Hyderabad held at Hyderabad on 4th July 2015...very close to my heart)

© 4th July 2015 Sushil Kumar Sharma
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माँ

पूछे कोई क्या है कुदरत का सबसे बड़ा करिश्मा,
दोनों हाथों से नमन करूँ और कहूँ वो है माँ।

क्षितिज पे मिलन का हो आभास पर ना मिलें धरती-आसमां,
जिनके सिर हो माँ का साया हासिल उन्हें दोनों जहाँ।

कहते हैं महफूज़ उसे हो खुदा जिसका निगेहबाँ,
खुदा को देखा नहीं पर मेरा खुदा है मेरी माँ।

बच्चों की जीवन आकृतियों में रंग भरा करती है माँ,
इंसान के बदरंग कृत्यों को सहे चुपचाप धरती माँ।

(माँ दिवस २०१५ पर समस्त माँओं को मेरा नमन...)

© 10th May 2015 Sushil Kumar Sharma
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